Sunday, August 2, 2009

श्री साई बाबा का रहन-सहन व दिनचर्या
















श्री साई बाबा ने तरुणावस्था में भी कभी केश नहीं कटवाये थे। इसके पीछे ऐसा भी कारण माना जाता है कि वे अयोनिज थे। तेजरुप थे। अत: उन्हें केश कटवाने की आवश्यकता भी नहीं थी। वे सदैव एक पहलवान की तरह रहते थे। उनका शरीर भी कमोबेश पहलवान जैसा ही था।

श्री साई बाबा शिरडी से तीन किलोमीटर दूर राहाता में जब जाते थे तो वहाँ से गेंदा, जूही, जई के पौधे ले आते थे और उन्हें जमीन को स्वच्छ करके वहाँ रोप दिया करते थे। इतना ही नहीं बल्कि वे पौधों को अपने हाथों से सींचा भी करते थे।

उनके एक भक्त थे वामन तात्या। तात्या उन्हें नित्य मिट्टी से बने दो घड़े दिया करते थे। उन घडों से ही बाबा पौधौं में जल सींचा करते थे।

श्री साई बाबा का नियम था कि वे स्वयं कुएँ से पानी खींचकर पौधौ को सींचा करते थे और संध्या के समय उन घडों को नीम के वृक्ष तले रख दिया करते थे। लेकिन तब एक चमत्कार होता था कि श्री साई बाबा जब घड़े वहाँ रखते थे तो वे घड़े अपने आप ही फूट जाया करते थे। इसका कारण संभवत: यह भी हो सकता है कि वे घड़े बिना पकाए हुए और कच्ची मिट्टी के बने होते थे।

अगले दिन तात्या उन्हें दो नये घड़े दे जाया करते थे। यह सिलसिला तीन वर्ष तक चला। श्री साई बाबा के घोर श्रम के फलस्वरूप ही वहाँ फूलो की एक मनोरम फुलवारी बन चुकी थी।

उल्लेखनीय है कि वर्तमान में बाबा का समाधि मंदिर जिस भव्य भवन में है, वह भवन इसी स्थान पर बना हुआ है। आज भी वहाँ देश-विदेश से हजारों-लाखों भक्त श्री साई बाबा के दर्शनार्थ वहाँ जाते हैं।

( जय साई राम)

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