Friday, July 31, 2009

अमृत वाणी
















सुखदायक सिद्ध साईं के नाम का अमृत पी
दुख: से व्याकुल मन तेरा भटके ना कभी
थामे सब का हाथ वो, मत होई ये भयभीत
शिरडी वाला परखता संत जनों की प्रीत
साई की करुणा के खुले शत-शत पावन द्वार
जाने किस विध हो जाये तेरा बेडा पार
जहाँ भरोसा वहाँ भला शंका का क्या काम
तु निश्चय से जपता जा साई नाम अविराम
ज्योर्तिमय साई साधना नष्ट करें अंधकार
अंतःकरण से रे मन उसे सदा पुकार
साई के दर विश्वास से सर झुका नही इक बार
किस मुँह से फिर मांगता क्या तुझको अधिकार
पग – पग काँटे बोई के पुष्प रहा तू ढूंढ
साई नाम के सादे में ऐसी नही है लूट
मीठा – मीठा सब खाते कर-कर देखो थूक
महालोभी अतिस्वार्थी कितना मूर्ख तू
न्याय शील सिद्ध साई से जो चाहे सुख भी
उसके बन्दो तू भी न्याय तो करना सीख
परमपिता सत जोत से क्यूं तूं कपट करे
वैभव उससे मांग कर उसे भी श्रद्धा दे
साई तेरी पारबन्ध के बदले है सत्यालेक
कभी मालिक की ओर तू सेवक बनकर देख
छोड़ कर इत उत छाटना भीतर के पट खोल
निष्ठा से उसे याद कर मत हो डाँवाडोल
साई को प्रीतम कह प्रीत भी मन से कर
बीना प्रीत के तार हिले मिले ना प्रिय से वर
आनन्द का वो स्त्रोत है करुना का अवतार
घट घट की वो जानता महा योगी सुखकार

(जय सांई राम)

Friday, July 24, 2009

साई बाबा का अमृतमय उपदेश


















एक दिन दोपहर की आरती के बाद जब भक्त अपने-अपने घरों की ओर लौट रहे थे तब बाबा ने उन्हें मधुर वाणी में अमृतमय उपदेश देते हुए इस प्रकार कहा- “तुम कुछ भी, जो मर्जी हो करो, लेकिन यह याद रखो कि तुम जो कुछ भी करते हो, वह सब मुझे पता है। मैं ही सब जीवों का स्वामी हूँ और सबके ह्रदयों में वास करता हूँ । संसार के जितने जडचेतन जीव हैं, वे मेरे ही उदर में समाए हुये हैं। समुचे ब्रह्मांड को नियंत्रित व संचालित करने वाला भी मैं ही हूँ। मैं ही संसार की उत्पत्ति करता हूँ, मैं ही इसका पालन-पोषण करता हूँ और मैं ही संहार करता हूँ। लेकिन जो मेरी भक्ति करते हैं, उन्हें कोई भी, किसी भी प्रकार की हानि नहीं पहुँचा सकता। जो मेरी भक्ति से विमुख (वंचित) रहते हैं, वही माया के मकड-जाल में फँसते हैं।

(जय साई राम)

Friday, July 17, 2009

पावन तीर्थ शिरडी
















महाराष्ट्र प्रांत के अहमद नगर जिले में बहने वाली गोदावरी नदी के तटवर्ती क्षेत्र बड़े भाग्यवान है, जहाँ अनेक संतो ने जन्म लिया है। ऐसे संतो में संत श्री ज्ञानेश्वर महाराज प्रमुख थे।

जहाँ तक शिरडी का प्रश्न है, यह अहमद नगर जिले के कोपर गाँव तालुका में है। गोदावरी नदी पार कर लेने के बाद जो सीधा मार्ग जाता है, वह शिरडी जाकर ही समाप्त होता है। करीब आठ मील चल लेने के बाद नीमगाँव पहुँचने पर वहाँ से शिरडी के दर्शन होने लगते है।

श्री साई बाबा ने शिरडी में अवतार लेकर उसे उतना ही पावन बना दिया जितना पावन दामोजी ने पंढरपुर के निकट मंगलवेढा को, समर्थ रामदास ने सज्जनगढ को, दत्तावतार नरसिंह सरस्वती ने वाडी को पावन बनाया था।

(जय साई राम)

श्री साई बाबा का चरित्र
















इस संसार रुपी सागर में साई बाबा का चरित्र ठीक वैसा ही है जैसे समुद्र में ज्योतिस्तंभ होता है। समुद्र में ज्योतिस्तंभ के सहारे ही सामुद्रिक जहाजों, नावों को चलाने वालों को संभावित खतरे का आभास हो जाता है और दुर्घटना घटने की संभावना नहीं रहती और न ही किसी प्रकार की हानि हो पाती है।

श्री साई सच्चरित्र अमृत से भी मधुर व संसार-पथ को सरल बनाने वाला है। कानों से सुनकर ‘श्री साई सच्चरित्र’ को जब हृदयंगम किया जाता है तो दैहिक बुद्धि (अर्थात देह के प्रति आसक्ति) का नाश हो जाता है और कुशंकाएं गायब हो जाती हैं। इतना ही नहीं बल्कि अहं भाव भी नष्ट भी नष्ट हो जाता है। जब अहं भाव नष्ट हो जाता है तो बुद्धि स्थिर हो जाती है और ज्ञान का प्रकाश हो जाता है जिससे मोक्ष का मार्ग खुलता है।

अर्थात साई बाबा के पावन यश का श्रध्दा-भाव से श्रवण करने पर भक्तो के पाप नष्ट होंगे, पाप नष्ट होने से मोक्ष का मार्ग खुलेगा। इस तरह ‘श्री साई सच्चरित्र’ मोक्ष प्राप्ति का सरल उपाय है।

(जय साई राम)