Monday, August 17, 2009

बाबा को श्री साई का संबोधन
















चांद पाटिल के साले के लड़के की बारात शिरडी पहुँची तो बारात का भव्य स्वागत किया गया। बारात खंडोबा मंदिर के निकट म्हालसापति के खेत में एक पेड़ के नीचे ठहराई गई थी। बैलगाड़िया खोलकर बैलों को खंडोबा मंदिर के सामने ही खड़ा किया गया था। फिर बाराती एक-एक करके गाड़ियों से नीचे उतरे।

लेकिन जब वह तरुण फकीर उतरा तो म्हालसापति ने ‘आओ साई’ के संबोधन से फकीर का स्वागत किया। फिर वहाँ उपस्थित अन्य लोगों ने भी तरुण फकीर को ‘साई’ कहकर ही सम्मानित किया। इसके बाद से तरुण फकीर ‘श्री साई’ के नाम से प्रसिद्घ हो गया और फिर सर्वत्र उसे ‘श्री साई बाबा’ नाम से प्रसिद्धि मिली।

(जय साई राम)

श्री साई बाबा का शिरडी में प्रथमागमन

















श्री साई बाबा के माता-पिता कौन थे? उनका जन्म कब और कहाँ हुआ था? इस बारे किसी को भी ठीक से कुछ ज्ञात नही था। इस संदर्भ में काफी खोजबीन भी की गई और स्वयं श्री साई से भी पूछा गया लेकिन कोई भी संतोषजनक उत्तर या कोई सूत्र हाथ नही लग सका।

वास्तव में श्री साई बाबा का प्राकट्य हुआ था जन्म नही। जन्म तो योनिज का होता है जबकि अयोनिज का प्राकट्य होता है। श्री साई बाबा का भी प्राकट्य हुआ था, ठीक वैसे ही जैसे नामदेव व कबीरदास का प्राकट्य हुआ था। वह भी बालरूप में।

नामदेव व कबीर जहाँ बालरूप में मिले थे वहीं श्री साई बाबा सोलह वर्ष की तरुणावस्था में शिरडी में नीम के पेड़ के नीचे भक्तों के कल्याण के लिए प्रकट हुए थे।

वे पूर्ण ब्रह्यज्ञानी थे। सांसारिक पदार्थो की उन्हें स्वप्न में भी कोई लालसा नहीं थी। माया को वे ठुकरा चुके थे तो मुक्ति उनके श्रीचरणों में लोटती थी।

शिरडी गाँव की एक वृद्धा स्त्री (नाना चोपदार की माँ ) ने श्री साई बाबा के बारे में वर्णन करते हुए बताया कि एक तरुण, स्वस्थ, फुर्तीला व अतिशय सुन्दर बालक नीम के पेड़ के नीचे उन्हें समाधिस्थ दिखाई दिया। उसे सर्दी-गर्मी और बरसात की जरा भी परवाह नहीं थी।

इतनी छोटी आयु में एक तरुण को तपस्या करते देख लोगों को बडा आश्चर्य हुआ। वह तरुण दिन में किसी से भी नही मिलता था। रात्री में भी वह निर्भीकता से भ्रमण करता था। लोग उस तरुण के बारे में आश्चर्यचकित होकर इधर-उधर लोगों से पुछते फिरते थे कि तरुण का आगमन कहाँ से हुआ है? उस तरुण का शारीरिक सौंदर्य ऐसा था कि जो कोई भी उसे एक बार देख लेता था, वह सम्मोहित सा हो जाता था।

वह तरुण हमेशा नीम के पेड़ के नीचे बैठा रहता था उसका आचरण किसी महात्मा से कम नही था। वह त्याग व वैराग्य की प्रतिमा ही था।

एक बार एक आश्चर्यजनक घटना घटी। घटना के अनुसार एक भक्त पर भगवान खंडोबा का संचरण हुआ। लोगों ने शंका-समाधान की द्रष्टि से खंडोबा से पूछा, “ हे देव! बतलाइए कि इस तरुण के माता-पिता कौन हैं और इसका आगमन कहाँ से हुआ है?”

इस पर भगवान खंडोबा ने एक कुदाली मंगवाकर निर्दिष्ट स्थान को खोदने के लिए कहा। जब वह स्थान पूरी तरह खोद दिया गया तो वहाँ पत्थर के नीचे कुछ ईटें मिली। पत्थर व ईटों को हटाया गया तो वहाँ एक दरवाजा दिखाई दिया, जहाँ चार दीपक जल रहे थे। उस दरवाजे का रास्ता एक गुफा में जाता था, जहाँ गाय के मुख के आकार की इमारत, लकड़ी के तख्ते, मालाएँ आदि दिखाई दीं।

भगवान खंडोबा बोले कि इस तरुण ने इस स्थान पर बारह वर्ष तक तप किया है। तब लोग उस तरुण से ही प्रश्न करने लगे। लेकिन उस तरुण ने बात को यह कहकर टाल दिया कि यह मेरे गुरुदेव कि पवित्र भूमि है, जो मेरे लिए पूजनीय है। तब फिर लोगो ने उस दरवाजे को पहले की तरह बंद कर दिया।

जिस तरह अश्वत्थ (पीपल) और औदुंबर (गूलर) के पेड़ों को पवित्र माना जाता है, उसी तरह नीम के पेड़ को भी श्री साई बाबा ने उतना ही पवित्र माना और उससे प्रेम किया।

जिस नीम के पेड़ के नीचे श्री साई बाबा तप किया करते थे, उस स्थान को व पेड़ को न केवल म्हालसापति बल्कि अन्य भक्तजन भी गुरु का समाधि-स्थल समझकर सदैव ही नमन किया करते थे।

(जय साई राम)

Tuesday, August 4, 2009

साई बाबा जी का जीवन साथी के प्रति उपदेश
















बहुत से रिश्तों में खटास सिर्फ इसीलिए आ जाती है कि वे मिल-बैठ कर कुछ मिनट बतियाते नहीं। दोस्तों/रिश्तेदारों की बुराई हो या दफ्तर की समस्या हल्का-फुल्का बांटने से दिमाग का प्रेशर भी तो कम होता है बेहतरीन पार्टनर बनने का यूं तो कोई सटीक नुस्खा अब तक ढ़ंढ़ा नहीं जा सका है पर रिश्तों में गर्माहट बनाए रखने और उनको नीरस होने से बचाने के कुछ मामूली से तरीके जरूर हैं, जिनको अपने जीवन में शामिल कर आप भी बन सकते हैं ‘नंबर वन’ जीवन साथी। प्रेमपूर्ण उत्साहजनक तरीके से जीवन भर किसी का साथ निभा पाना कोई हंसी-खेल नहीं है। दांपत्य को हमेशा उकताहट और नीरसता ही नहीं तबाह करती, बल्कि कई दफा रिश्तों में गर्माहट रखने में ही पिछड़ जाते हैं हम। बेहतरीन जीवनसाथी साबित होने के लिए कुछ नुस्खे अपनाए जा सकते हैं।

विश्वास करें

किसी भी रिश्ते को बेहतर तरह से निभाने का मूल मंत्र है, उस पर सौ फीसद विश्वास करना। किसी तरह का भय या शक दिल में जहां रखा आपने, समझिए प्रेम से दूर कर रहे हैं खुद को। विश्वास टूटने के भय से पहले ही उस पर शंकालू निगाह रखना, आपको कमजोर करता जाता है। प्रेम तो छूटता ही है, जो चीजें आपके पास होनी थीं, वे भी दूर होती जाती हैं।

स्वीकारें

जिसे आप प्यार करते हैं, उसे संपूर्णता के साथ स्वीकारें। उसकी अच्छाइयों को अपना लेना और कमियों का चुन-चुन कर सुबह-शाम गिनाते फिरना, आपके प्यार के लिए बिल्कुल अच्छा नहीं है। जो है, जैसा है, उसको भर दीजिए प्यार से। संपूर्णता में प्यार करें। कमियों को कमियों की तरह लेना ही छोड़ दें। क्योंकि कोई भी परफेक्ट नहीं हो सकता। कुछ कमियां तो आपमें भी होंगी।

उत्साहवर्धन करें

बात चाहे प्यार की हो या उसके काम की, जितना हो सके, उसका उत्साह बढ़ाइए। यह कभी नहीं मानकर बैठ जाइए कि प्रोत्साहन की उसे जरूरत नहीं, क्योंकि हर किसी को बूस्ट-अप करना नहीं आता। और कोई कितना भी कहे पर हर किसी को तारीफ भाती है। यह बहुत जरूरी है, तो बस शुरू हो जाइए।

सम्मान करें

याद रखिए सम्मान देने से ही मिलता है। आप अपने जीवन साथी का सम्मान करेंगे तभी दूसरे भी उसे सम्मानित नजरों से देखेंगे। यदि आपने ही उसके बारे में अनाप-शनाप बोलना शुरू कर दिया तो दूसरों को कैसे रोकेंगे। अपनी नाराजगी या नापसंद जरूर बताएं उसे। पर यह ख्याल रखें, कि उसका सम्मान किसी भी तरह दुखे नहीं।

सलाह लें

कितनी भी अपनी मर्जी चलाने की आदत हो आपकी, बिना रूके या सोचे हर छोटी-बड़ी बात पर उनकी भी सलाह लें। आपको यह पता भी हो कि अमुक मामले में उनका रिएक्शन क्या होगा तो भी आपकी यह जिम्मेदारी बनती है कि आप उनसे पूछे जरूर। फिर अपने तर्क देकर आप वही करें जो आपकी मर्जी है, पर थोपें नहीं कुछ।

समय दें

आप कुछ भी क्यों न करते हों, कुछ समय एक-दूसरे को जरूर दें। साथ में बैठ कर टीवी देख लेना, एक साथ डिनर करना या एक ही बिस्तर पर सो लेने से भावनात्मक नजदीकियां नहीं पनपती। कई रिश्तों में खटास सिर्फ इसीलिए आ जाती है कि वे मिल-बैठ कर कुछ मिनट बतियाते नहीं। दोस्तों/रिश्तेदारों की बुराई हो या दफ्तर की समस्या हल्का-फुल्का बांटने से दिमाग का प्रेशर भी तो कम होता है।

(जय साई राम)

Sunday, August 2, 2009

श्री साई बाबा का रहन-सहन व दिनचर्या
















श्री साई बाबा ने तरुणावस्था में भी कभी केश नहीं कटवाये थे। इसके पीछे ऐसा भी कारण माना जाता है कि वे अयोनिज थे। तेजरुप थे। अत: उन्हें केश कटवाने की आवश्यकता भी नहीं थी। वे सदैव एक पहलवान की तरह रहते थे। उनका शरीर भी कमोबेश पहलवान जैसा ही था।

श्री साई बाबा शिरडी से तीन किलोमीटर दूर राहाता में जब जाते थे तो वहाँ से गेंदा, जूही, जई के पौधे ले आते थे और उन्हें जमीन को स्वच्छ करके वहाँ रोप दिया करते थे। इतना ही नहीं बल्कि वे पौधों को अपने हाथों से सींचा भी करते थे।

उनके एक भक्त थे वामन तात्या। तात्या उन्हें नित्य मिट्टी से बने दो घड़े दिया करते थे। उन घडों से ही बाबा पौधौं में जल सींचा करते थे।

श्री साई बाबा का नियम था कि वे स्वयं कुएँ से पानी खींचकर पौधौ को सींचा करते थे और संध्या के समय उन घडों को नीम के वृक्ष तले रख दिया करते थे। लेकिन तब एक चमत्कार होता था कि श्री साई बाबा जब घड़े वहाँ रखते थे तो वे घड़े अपने आप ही फूट जाया करते थे। इसका कारण संभवत: यह भी हो सकता है कि वे घड़े बिना पकाए हुए और कच्ची मिट्टी के बने होते थे।

अगले दिन तात्या उन्हें दो नये घड़े दे जाया करते थे। यह सिलसिला तीन वर्ष तक चला। श्री साई बाबा के घोर श्रम के फलस्वरूप ही वहाँ फूलो की एक मनोरम फुलवारी बन चुकी थी।

उल्लेखनीय है कि वर्तमान में बाबा का समाधि मंदिर जिस भव्य भवन में है, वह भवन इसी स्थान पर बना हुआ है। आज भी वहाँ देश-विदेश से हजारों-लाखों भक्त श्री साई बाबा के दर्शनार्थ वहाँ जाते हैं।

( जय साई राम)